कहानी का शीर्षक-- पिया बसंती रे... (# बसंत का मौसम आने को है)
बसंती एक चुलबुली और बहुत ही शरारती लड़की थी। सब उसकी शरारतों से परेशान रहते, किशोरावस्था में भी उसकी चंचलता कम नहीं हुई थी।
उसी के साथ पढ़ने वाला सुंदर उसे चाहने लगा था, पर कभी कह नहीं पाता था।
उनकी काॅलोनी में काली बाड़ी में हर वर्ष बसंत पंचमी वाले दिन सरस्वती पूजा होती थी, पंडाल सजाया जाता था और वहाँ पूरे दिन गीत संगीत का कार्यक्रम होता था। रात को कुछ प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता था जैसे संख बजाना, सरस्वती वंदना, नृत्य और समान्य ज्ञान।
बसंती और सुंदर हर बार लगभग सभी प्रतियोगिताओं में भाग लेते और दिनभर खूब मस्ती करते।
दोनों की बारहवीं की बोर्ड परीक्षा थी, घर में सबने मना किया था बसंती को कि ज्यादा नाचने कूदने पर ध्यान मत दे, मन लगा कर पढा़ई कर। सारा दिन पंडाल में रहने की जरुरत नहीं है, घर में ही सरस्वती पूजा कर लेना। लेकिन वो बसंती मानने वालों में से कहाँ थी। मम्मी की पीली साड़ी पहन सज सँवर कर पहुँच गई थी सुबह सवेरे ही।
सारा दिन पड़ाल में अपनी सहेलियों के साथ मस्ती करती रही।
वहीं सुंदर भी अपना पीला कुरता और सफेद पजामा पहन अपने दोस्तों के साथ पहुँचा हुआ था।
बसंती का रंग साँवला था पर नैन नक्श बहुत ही सुंदर और उसकी आवाज़ तो कोयल की तरह मधुर थी। इस बार सत्रहवाँ बसंत था उसके जीवन का। मम्मी की पीली साड़ी में गज़ब की खूबसूरत लग रही थी। सुंदर के दोस्तों ने उसे छेड़ते हुऐ कहा देख सरसों के खेत में काली भैंस जैसी लग रही है ना बसंती। बसंती उन लड़को के सामने खड़ी हो बोली, "ये भैंस जब सींग मारेगी , तो बचना मुश्किल है तुम सबका। "
सुंदर को अपने दोस्तों का इस तरह बसंती का मजाक उड़ाना बहुत बुरा लगा। वो उन सबसे अलग जाकर खड़ा हो जाता है। आज तो वो मन में सोच कर आया था कि इस बार वो सरस्वती पूजा के साथ साथ वैलेनटाईन वीक भी सेलीब्रेट करेगा उसके साथ।
शाम को बसंती ने स्टेज पर जब सरस्वती वंदना के बाद पिया बसंती रे.. गाना गाया, सब मंत्रमुग्ध हो गए उसका गाना सुनकर। सुंदर भी कोने में खड़ा हो अपने हाथों में कार्ड और पीला गुलाब का फूल लिए खड़ा था।
जब प्रोग्राम खत्म हुआ, आरती और प्रसाद लेने के बाद बसंती अपने घर जाने लगी तो सुंदर उसके सामने घुटनों पर बैठ कार्ड और वो पीला गुलाब का फूल देते हुए बोला ,"मेरी वैलेनटाईन बनोगी बसंती। "
बसंती हँसते हुऐ वो कार्ड ले टुकड़े टुकड़े कर हवा में उड़ा देती है और फूल को अपने पैरों से कुचल देती है।
परिक्षाऐं खत्म होती है, रिजल्ट आता है दोनों ही अच्छे नंबरों से पास होते हैं।
सुंदर आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चले जाता है और बसंती को तो लगता है जैसे उसकी सभी शरारतें, सारी चंचलता, उसकी हँसी सुंदर अपने साथ ले गया।
उस दिन बसंत पंचमी को और उस वैलेनटाईन डे का कार्ड तो उसने फाड़ दिया और वो गुलाब का पीला फूल भी उसने कुचल तो दिया था लेकिन उसके जाने के बाद बसंती की निगाहें सुंदर को ही खोजती थी।
हर साल वो बसंत ऋतु के समय बहुत रोती क्यों उसने अपने पहले प्यार को ठुकराया, अपने आप को कोसती।
वो भी उसे बहुत प्यार करने लगी थी। हमेशा एक ही गाना उसके होठों पर रहता.. पिया बसंती रे.. काहे सताऐ आजा..
सुंदर उससे कोसों दूर था पर मन उसका हमेशा बसंती के आस-पास ही रहना चाहता, उसे खुद पर और अपने प्यार पर पूरा विश्वास था कि एक दिन ऐसा जरूर आऐगा जब बसंती भी उससे प्यार करेगी। और उसका विश्वास पूरा हुआ जब पढ़ाई पूरी कर वो घर लौटा तो रास्ते में ही बसंती मिली जो उसके वापस लौटने का इंतजार कर रही थी। बसंत का महीना ही कुछ खास होता है जिसमें हवाओं में भी प्यार का एहसास होता है। आज जब सुंदर को बसंती ने देखा तो कार्ड और पीला और लाल गुलाब फूल हाथ में लिए.... अपने घुटनों पर बैठ बसंती ने कहा , "क्या मुझे माफ कर सकोगे और मेरे वैलेनटाईन बनोगे। "
सुंदर ने उसे उठाते हुऐ कहा, " मैं तो तुझसे कभी नाराज था ही नहीं मेरी बसंती। "
कुछ साल बाद दोनों बसंत पंचमी के दिन हमेशा के लिए शादी के बंधन में बंध गए।
उनकी पहली शादी की सालगिरह और बसंत ऋतु के आने का बसंती को बेसब्री से इंतजार था। वह रोज दिन गिनती और खुद को समझाती.. बसंत आने को है ये बसंती!
Gunjan Kamal
06-Dec-2022 02:15 PM
शानदार
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Mahendra Bhatt
03-Dec-2022 07:40 AM
Nice
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Peehu saini
02-Dec-2022 09:45 PM
Bahut khoob 😊🌸
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